Faith Foundation

विश्व के प्रत्येक ईमानदार इतिहासकार ने एक स्वर से जैन धर्म की मौलिकता एवं महान प्राचीनता को स्वीकार किया है। वेदों और पुराणों में प्राप्त हुए जैनिसम् के उल्लेखों के प्रमाण भी इस बात का समर्थन करते हैं, परंतु मात्र प्राचीन होना वह सत्य का प्रमाण नहीं है; पर सत्य तो तब सिद्ध होता है जब उस धर्म के सिद्धांत (Principle) परीक्षा से पार उतरते है।

कुछ समय पहले वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि आधुनिक विज्ञान भी जैन धर्म के सिद्धांतों को चुनौती नहीं दे सकता है।

आज विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में जैन धर्म पर अनुसंधान (RESEARCH) किया जा रहा है। भारत में रहे हुए प्राचीन ज्ञान भंडार में विदेशी विद्वानों का बड़ी संख्या में आगमन हो रहा है और जैन धर्म का अध्ययन करने के पूर्व जैन धर्म और शास्त्र (ज्ञान) पर श्रद्धा करने वाले विदेशिओं की संख्या भी कुछ कम नहीं हैं।

इस FAITH FOUNDATION में 2500 वर्ष पूर्व चरम तीर्थपति श्री महावीर स्वामी कथित सिद्धांतों को एक - एक करके सटीक एवं निष्पक्ष ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पूरे विश्व के लिए जो प्रसंग चमत्कार रूप लगते हैं या रहस्य लगते हैं. उन सभी रहस्यमय बातों का पर्दा फाश प्रभु ने अपने केवलज्ञान से 2500 वर्ष पूर्व ही कर दिया था।

इस FAITH FOUNDATION द्वारा आप श्री के हृदय में,
प्रभु महावीर स्वामी के प्रति
प्रभु महावीर स्वामी के सिद्धांतों के प्रति
प्रभु महावीर स्वामी के शासन की प्राप्ति के प्रति
ज्वलंत श्रद्धा प्रगट हो वैसी कामना से लेख प्रस्तुत किया जा रहा हैं।

आस्तिकता का आधार आत्मा की सिद्धि है। यदि यह आत्मा ही नहीं हो तो पुण्य, पाप, परलोक, स्वर्ग, नरक, मोक्ष आदि कुछ भी नहीं माना जा सकता। परंतु यदि आत्मा की सिद्धि हो जाए तो ये सभी चीजें भी स्वतः सिद्ध हो जाती हैं, क्योंकि पुण्य आदि तत्त्व आत्मा से संबंधित वस्तु हैं। आत्मा की सिद्धि अब समुद्घात, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, दिव्यसृष्टि आदि अनेक विषयों के माध्यम से की जाती है।

समुद्घात यह आत्मा के प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया है। विभिन्न निमित्तों के कारण इसके विभिन्न प्रकार होते हैं।

सत्त समुग्धाता पन्नत्ता । तं जहा वेयणा समुग्धाए, कसायसमुग्घाए, मारणांतियसमुग्धाए, वेयुव्वियसमुग्धाए, आहारगसमुग्धाए, केवलिसमुग्धाए । (स्थानांगसूत्र ।। 687 11)

तीर्थंकरों ने सात समुद्घात कहे हैं। वे इस प्रकार हैं:- वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात, केवली समुद्घात ।

जब किसी जीव को कष्ट आदि का सामना करना पड़ता है तो अनचाहे भी उसकी आत्मा के प्रदेश अपने शरीर से बाहर निकल जाते हैं और उस समुद्घात के अनुसार वह अपने शरीर का जितना नाप हो उतने प्रमाण में निकल सकता है या अनेक योजन जितने प्रमाण (size) में भी निकल सकता हैं। यह पूरी प्रक्रिया जैन ग्रंथो में सूक्ष्मता से दी गई है। शायद एक सवाल उठ सकता है कि आत्मा स्वयं दृश्यमान नहीं है, फिर आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना और उसके छोटे-बड़े प्रमाण का होना इन सभी बातों पर कैसे विश्वास किया जा सकता हैं? इसका उत्तर है यह प्रसंग.....

एक अलौकिक सफर

विश्वप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक CARL JUNGE ने "MEMORIES DREAMS REFLECTIONS" (1962-63) में अपने मृत्यु के अनुभव का वर्णन किया है। 1944 में उन्हें ज़बरदस्त दिल का दौरा पड़ा। वे मौत की आखिरी घड़ियां गिन रहे थे। डॉक्टर ऑक्सीजन की मदद से उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे थे। उस समय उन्हें यह अनुभव हुआ कि वह अपना शरीर त्याग कर हजारों मील ऊपर पहुंच गए और अद्धर लटके हुए हैं। वह इतने हल्के हो गए कि किसी भी दिशा में अपनी इच्छा अनुसार जा सकते हैं। उन्होंने ऊपर ऊपर से यरूशलेम नगर को देखा और साथ ही उन्होंने अन्य चीजें भी देखी। उन्हें लगा कि वह पहले से बहुत बदल गए हैं। कुछ समय इस अवस्था में रहने के बाद उन्हें पुराने शरीर में लौटना पड़ा और वह जीवन फिर से शुरू हो गया। उन्होंने खुद को फिर से डॉक्टरों से घिरा हुआ पाया। अपने मरीज़ का जीवन वापस आया देखकर उन डाक्टरों के मुख पर का आनंद भी उन्होंने देखा ।

अमेरिका के मियामी में रहने वाला लिन मेलबिन को भी ये अनुभव हुआ। उसका अनुभव उसी के शब्दों में पढ़िये। "मौत से पहले मैं काफी तनाव में था और तेज सिरदर्द और जलन हो रही थी। अचानक सबकुछ बहुत शांत हो गया- मैं शक्ति, शांति, स्वतंत्रता और शीतलता का अनुभव करते हुए हवा में तैरने लगा। मेरे आस पास का वातावरण बेहद रंगीन और खूबसूरत था। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गया हूँ मुझे यकीन है कि मैं मर चुका हूं। इसके अलावा ऐसी दुनिया तक कैसे पहुंचा जाए? मैं आत्मरूप से स्वतंत्र भ्रमण कर रहा हूँ। लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक नहीं रही। थोड़े ही समय में जैसे किसी ने मुझे वापस मेरे पिछले शरीर में धकेल दिया हो ऐसा अनुभव हुआ। जैसे ही मेरे शरीर को दफ़नाने की तैयारी की जा रही थी, वैसे ही मुझे होश आ गया। मुझे जीवित देखकर मेरा परिवार बहुत खुश हुआ। उसमें भी मेरी छोटी बेटी तो सीधे मेरे पास दौड़ी चली आई और मुझसे लिपट गई।"

ब्रिटेन में फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के एक CARDIOLOGIST MICHAEL SALEM. उन्होंने हृदय विफलता के 116 मामलों को विस्तार से दर्ज किया। पांच साल तक इस विषय में मेहनत की। इनमें से 61 मामलों की रिपोर्ट इस प्रकार थी हम अपने शरीर से अलग हो गए हैं और एक अलग दुनिया में चले गए हैं। आज इस शोध का निष्कर्ष दुनिया को आश्चर्यचकित करता है। इस वास्तविकता को भगवान महावीर ने 2600 वर्ष पूर्व अपने शुद्ध ज्ञान के प्रकाश में देखा और बताया था; जो आज भी धर्म ग्रंथों में अंकित है।

शरीर में आत्मा नाम का तत्त्व हो तब ही यह सब संभव हो सकता है। इन अलौकिक घटनाओं को भले विश्व में रहस्यमय माना जाता हो पर परमात्मा के सिद्धांतों में तो वर्षों पूर्व सिद्ध हो चुका है कि आत्मा शरीर से अलग है, शरीर से अधिक बलवान है और अनंत शक्ति का मालिक है।

जिज्ञासा और समाधान

जिज्ञासा: एक भव में मरण समुद्घात कितनी बार होता है? एक बार या दो बार ?

समाधान : श्री भगवतीसूत्र के छट्ठे शतक के छठे उद्देशक में इस प्रश्न का जवाब दिया है कि :-

  1. कितनेक जीव मरण समुदघात किए बिना ही मर के दूसरे भव में जाते हैं।
  2. कितनेक मरण समुद्घात करके मर के दूसरे भव में जाते हैं।
  3. कितनेक जीव एक बार मरण समुद्घात करके फिर वापस आत्मप्रदेशों के दंड को संकोचित करके स्वभावस्थ बनकर यानी कि मरण समुद्घात से निवृत्त होकर फिर कंदुक या मंडूक गति से मरण समुद्घात किए बिना ही दूसरे भव में जाते हैं।
  4. कितनेक जीव इस तरह एक बार मरण समुद्घात करके उसमे से निवृत्त होकर दूसरी बार फिरसे मरण समुद्घात करते हैं, उसमे रहते हुए ही (यानी कि आत्मप्रदेशों के दंड को उत्पत्ति स्थान तक लंबाए हुए रखकर ही, उसका संहरण किए बिना ही) मृत्यु प्राप्त करके पूर्व के भव के स्थान में से जीवप्रदेशों को संहरण करके दूसरे भव के उत्पत्ति स्थान में इल्ली गति से जाते हैं। परंतु दूसरी बार के मरण समुद्घात में से निवृत्त नहीं होते ।

जिज्ञासा: मरण समुद्घात में क्या होता है?

समाधान : दूसरे भव के उत्पत्ति स्थान तक आत्मप्रदेशों को दंड के आकार से लंबाने का काम मरण समुद्घात में होता है।

जिज्ञासा : मरण समुद्घात में से निवृत्त होना यानि क्या ?

समाधान : दूसरे भव के उत्पत्ति स्थान तक दंड के आकार से लंबाए हुए आत्मप्रदेशों को वापस संकोचकर खींचकर इस भव के शरीर में लाकर रख देना, इसे मरण समुद्घात से निवृत्त होना कहते हैं।

जिज्ञासा: कंदुक / मंडूक गति और इल्ली गति में क्या फर्क है?

समाधान : कंदुक = बॉल। बॉल या मेंढक की तरह पहले पूर्व के जन्म स्थान को छोड़कर फिर नए उत्पत्ति स्थान में जाना । इल्ली की तरह पहले नए उत्पत्ति स्थान में जाकर फिर पुराने पूर्व के स्थान से खिसकना ।

कंडुक / मंडूक गति में जीव पहले मरता है, फिर दूसरी गति में जाता है। इल्ली गति में पहले परभव तक जाता हैं, फिर मरता है। मरण समुद्घात में मरने वाले की इल्ली गति होती हैं।